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मोह तथा संशय से परे (Moha tatha Sanshay se Pare)

Author: कृष्णकृपामूर्ती श्री श्रीमद् ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

Description

सुकरात से सार्ट्रे तक, पश्चिमी दार्शनिकों ने इन अन्तिम सवालों से सामना किया : “जीवन का अर्थ क्या है? क्या भगवान् का अस्तित्व है? परम अच्छाई क्या है, और हम इसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं?” लेकिन, उनके लेखन जितने भी शानदार क्यों न हो, पश्चिमी विचारकों द्वारा कोई निर्णायक जवाब नहीं दिया गया है। इन बातचीत की श‍ृंखला में बीसवीं सदी के सबसे महान् दार्शनिकों में से एक श्रील प्रभुपाद एक अंतर्दृष्टि विश्लेषण और प्रख्यात पश्चिमी दार्शनिकों में से कुछ मुख्य विचारों की आलोचना एक वैदिक दृष्टिकोण से देते हैं। उन्होंने भक्तियोग की प्रक्रिया की रूपरेखा की जिसके द्वारा हम अपने जीवन में मोह तथा संशय को पार कर पूर्णता के पथ पर निश्चय के साथ आगे बढ़ सकते हैं।

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